भिंसरहा के बात आय चिरइ चुरगुन मन चोंहचीव चोंहचीव करे लगे रहिन…अँजोरी ह जउनी हाथ म मोखारी अउ लोटा ल धरे डेरी हाथ म चूँदी ल छुवत खजुवावत पउठे पउठा रेंगत जात हे धसर धसर।जाते जात ठोठक गे खड़ा हो के अंदाजथे त देखथे आघू डहर ले एक हाथ म डोल्ची अउ एक हाँथ म बोहे घघरा ल थाम्हे दू परानी मुहाचाही गोठियावत आवत रहँय…दसे हाथ बाँचे रहिस होही सतवंतिन दीदी के मुँह माथा झक गय,जोहरीन दीदी के का पूछबे मुँह ला मटका मटका के गोठियई राहय कउ घघरा म भरे झिरिया के कंच फरी पानी छलक-छलक के कुँदाय असन डाढ़ी ले चुचवावत रहय रितउती ओरवाती असन।काहत राहय…भारी सुग्घर राजा बरोबर लइका अँवतरे हे सफुरा घर…छकछक ले गोरियानरिया लाम लाम हाथ गोड़ सूपाभर दई भोकण्ड हे लइका ह काहेक सुघर आँखी करिया करिया घुघरालू चूँदी अँइठे अँइठे बाँह नाक ह तो ऊपरे म माढ़े हे…मुँह के फबित ह मन ल मोहत हे।
पुरखा के आशीर्वाद नइते साहेब के भेजे काँही संदेश होही काहत रहिन सियान दाई मन लइका के छाती म परे चिन्हा ला… जोंकनँदिया के कंकरा म देखे रहेन बघवा के पाँव के चिन्हा ल तइसने डिट्टो दिखत हे लइका के छाती म छपे छप्पा ह…।
बने कब्खन देख के आ गेयेस बहिनी जोहरीन..ए दे महूँ ह पानी ल उतारतेसाट जाहूँ अउ आँखी भर देख के आहूँ अपन घासी के दुलरुवा ला…..।
पाँव परत हँव दीदी कहिथे अँजोरी ह सतवंतिन ला…जीयत रहा के आशीर्वाद अउ खबर ल पा के अँजोरी के अंतस ह गदगदा गय..मने मन मा पुरुषपिता ल सुरता करत मुड़ नवा के भज डरिस अउ गोठिया डरिस तोर महिमा अपरंपार हे पुरुषपिता दुखिया घासी के दुख ला हर लेये तैं..बेटा के बिछोह म कल्पत बपुरी सफुरा के गोदी म बेटा दे देये।
पुरुष तोर महिमा अपार…
गुरू हो तोर महिमा अपार…
बबा हो तोर महिमा अपार…गुनगुनावत गुनगुनावत झोरकी डहर उतर गय अँजोरी ह।
1795 के बछर भादो के अँधियारी पाख आठे के दिन आय सुरुज नारायण आधा घड़ी ठहर गे राहय घासी के अँगना म लइका ल देखे बर..लइका ल टकटक ले निहारिस तेजस्वी होय के आशीर्वाद देइस अऊ घासी संग सतनाम जोहार करत चल दिहिस अपन बूता म।तिहार के दिन परे रहय लइका ल देखे बर गाँव के नर-नारी मन के रेम लग गे घासी के अँगना म..पता नइ चलिस बेरा जुड़ाय लगिस फुरहुर फुरहुर पुरवई तन ल छुवे लगिस,हिरदे म पंथी के धुन उठे लगिस पाँव उसले लगिस हाथ के थपोरी ह लय ताल बनाय लगिस अउ खूंटी म ओरमे माँदर पता नइ चलिस कतका बेर गर म ओरम गे..कण्ठ ले पंथी गीत फूटे लग गे तन मन मा जोश के संचार होगे मँदरहा के चारो-मुड़ा गोल घेरा बन गे पंथी पहुँचे लगिस…अबाध अगास डहर गाँव शहर अउ ओ पुरुष के दरबार डहर…।
सन्ना ना नन्ना..ना नन्ना हो ललना
सन्ना ना नन्ना..ना नन्ना हो ललना
ए घासी के अँगना…ए घासी के अँगना
भेंट होगे संत गुरू राजा संग ना……..।
माँदर के ताल उही दिन अगास म ढिंढोरा पीट के बता दे रहिस गुरु घासीदास के ये ललना आघू चलके अपन पिता के पद चिन्हा म चलही जनमानस म शौर्य अउ सभिमान के भाव जगाही देश राज अउ समाज ल रीति नीति अनुशासन के गुरुमंत्र दीही, एकता के सूत्र म पिरोवत दया मया अउ महिनत के पाठ पढ़ाही,सतनाम पंथ(धर्म)के सादा धजा ला दुनिया दुनिया म फहराही।चारो दिशा म मनखे मनखे एक के संदेश गूँजे लगही…गुरु घासीदास बाबा अउ सतनाम के जय जयकार होय लगही तब समय रूपी शासक शूरवीर बालक के लोकप्रियता नेतृत्व क्षमता अउ सियानी करे के गुण ल देखही अउ देख के ढाल तलवार हाथी अउ लिखित म राजा के उपाधी भेंट करही।सच होगे…. राजागुरु बालक दास साहेब सादा के राजपगड़ी पहिरे हाथ म ढाल तलवार धरे हाथी म असवार हो के आजू बाजू अंगरक्षक महाबली सरहा जोधाई अउ लाव लश्कर के साथ निकले हे भंडारपुरी के महल के सींग दरवाजा ले।
ठँउका सुरता देवाये सुखदेव आज के दिन नेव परगे मानो लोकतंत्र के…छत्तीसगढ़ गवाही हे….।
–सुखदेव सिंह अहिलेश्वर
गोरखपुर कबीरधाम छत्तीसगढ़
Rajaguru Balakdas